अजमेर के सूबेदार मल्लूखां व राठौड़ो की सन्धि कराना
दिल्ली के बादशाह का अजमेर में सूबेदार था मल्लूखां पठान। वि.स. 1545 से 48 के बीच एक विशेष घटना हुई जिसमें जाम्भोजी ने सदुपदेश देकर युद्ध होने से रोका था। हुआ यूं की टोडानगर का ठिकाणेदार नेतसी तथा अजमेर के सूबेदार मल्लूखां पठान के आपस में मामूली झगड़ा हुआ था उसको लेकर मल्लूखां ने नेतसी को बन्दी बनाकर कैद में डाल दिया। नेतसी सोलंकी तात्कालीन जोधपुर के नरेश राव सांतल का भाणजा था। नेतसी ने राव सांतल को सामाचार भेजकर उसे मुक्त कराने की विनती की। राव सांतल ने आस-पास के राठौड़ ठिकानेदारों को बुलाकर इस विषय में विचार विमर्श किया। बारह कोटड़ियों के ठिकानेदारों में मेड़ता के राव दूदा, जोधपुर नरेश तथा राव सांतल जाम्भोजी में श्रद्धा रखते थे। राठौड़ो पर संकट के बादल मंडराने लगे। उनको मल्लूखां से युद्ध करने के अलावा कोई विकल्प नजर नहीं आया। वे अपनी-अपनी सेना लेकर अजमेर पर चढाई करने के उद्देश्य से मेड़ता व अजमेर के बीच ग्राम थांवला के पास पंहुच गये और काकोलाव तालाब पर डेरा डाला। भावीयुद्ध की विभिषिका से बचने का उपाय नहीं सूझा तो मेड़ता के राव दूदा ने अपने ईष्टदेव भगवान जम्भेश्वर का स्मरण किया। दूदा ने सुझाव दिया कि केवल एक नेतसी को छुड़ाने के लिए हजारों लोगो के प्राण जायेंगे। इसलिए सन्धि करलो जिसके लिए जाम्भोजी से प्रार्थना करो। अन्य कई मुख्य लोगो ने भी माना कि मल्लूखां हारने के बाद भी नेतसी को मार सकता है। उसको जीवित छुड़ाना असम्भव प्रतीत होता है। इस संकट की घड़ी में सद्गुरुदेव जाम्भोजी की शरण में जाकर कोई उपाय पूछा जाये। सभी ने मन ही मन जाम्भोजी का स्मरण किया और युद्ध को टालने की प्रार्थना करने लगे। इतने में चमत्कार हुआ की जाम्भोजी ग्राम थांवला मेें ही काकोलाव तालाब पर प्रकट हो गये। राठौड़ो को कहा कि चिन्ता मत करो मल्लूखां नेतसी को छोड़ देगा। युद्ध टल जायेगा। तुम अपना डेरा तालाब की सीमा से थोड़ा दूर कर लो। उधर राठौड़ों की सेना द्वारा आक्रमण की सम्भावना को देखते हुए मल्लूखां अपनी सेना को लेकर थांवला से थोड़ी दूर अजमेर की सीमा में डेरा डाले हुए था। मल्लूखां इससे पहले भी कईबार जाम्भोजी के दर्शन कर चुका था। वह जाम्भोजी की शक्ति व ज्ञान से जोरदार प्रभावित था। मल्लूखां को पता लग गया कि जाम्भोजी थांवला के काकोलाव तालाब पर आसन लगाकर विराजमान हैं। उन्होंने राठौड़ों को विजय का आशीर्वाद दे दिया है। तो मल्लूखां घबरा गया और अपनी सेना सहित जाम्भोजी के दर्शनार्थ तालाब पर पहुंच गया। उसने जाम्भोजी के चरणों मंे दण्डवत प्रणाम किया और एक पैर पर खड़े होकर युद्ध से पूर्व सदुपदेश देने की प्रार्थना की। भगवान जाम्भोजी ने कहा अभिमान करना, जीव हत्या करना, शैतानी करना, दैत्यों के राक्षसों के लक्षण है। संसार के अन्य पुरूषों को पीड़ा देना अपने अभिमान के कारण हजारों निर्दोष सेवकों व सैनिकों की हत्या कराने वाला नरकों में जाता है। परलोक में उसको सुख नही मिलेगा। भगवान जाम्भोजी की शब्दवाणी सुनकर मल्लूखां को ज्ञान हो गया। जाम्भोजी की आज्ञा मानी और नेतसी को कैद में से मंगवाया और थांवला लाकर राव सांतल को सौंप दिया। राठौड़ों की खुशी का ठिकाना नही रहा। जाम्भोजी के चमत्कार से नेतसी के प्राण बच गये। वह जाम्भोजी का शिष्य बन गया। मल्लूखां भी जाम्भोजी का शिष्य बन गया, उसने मांस खाना छोड़ दिया। राठौड़ों से संधि होने के कारण उसका मन भी बहुत प्रसन्न हुआ। सारी सेना सकुशल लौट गई। युद्ध टल गया, हजारों निर्दोष लोगों के प्राण बच गये। सभी ने जाम्भोजी की पूजा अर्चना की मन ही मन अपार खुशी हुई और जाम्भोजी का गुणगान करते हुए अपने-अपने गंतव्यों की ओर प्रस्थान कर गये। इस घटना से इस क्षेत्र के सभी राजघरानों की जाम्भोजी के प्रति अगाढ़ श्रद्धा बन गई।