राव जोधा को चमत्कारी नगाड़ा देना
राव जोधा के चार पुत्र अलग-अलग जगह राज्य स्थापित करने में चर्चा में रहे थे। राव दूदा व वरसिंह मेड़ता में, राव बीका बीकानेर में, राव बीदा द्रोणापुर में जिसने बाद में बीदासर बसाया था, मण्डोर अधिपति राव जोधा ने वि.सं. 1515 में नये नगर जोधपुर की प्रतिष्ठा की थी। मण्डोर मंे उनके भाई कानाजी रहते थे। उधर वि.सं. 1515 में ही जाम्भोजी ने सात वर्ष के होने के बाद ही गायें चरानी शुरू कर दी थी। वि.सं. 1516 में कुछ डाकू ऊँट, ऊँटनियांे को डाका डालकर ले गये थे। कानाजी का पुत्र राजकुमार ऊदोजी तथा जोधाजी का पुत्र बीदाजी पशुओं को डाकुओं से छुड़वाने के लिये पीछा करते हुए समराथल पर पहुंचे थे । पशुओं को तो जाम्भोजी ने छुड़वा दिया था । दोनो राजकुमार सेना सहित जाम्भोजी से मिले । शंका समाधन किया । प्रभावित हुए और वापस जोधपुर पहुंचकर राव जोधाजी को सारी बात बताई । राव जोधाजी चमत्कारी दिव्य शक्ति के दर्शनार्थ समराथल पर आये। बालक जम्भेश्वर पशु सेवा करते, बालकों के साथ अनेक तरह के खेल खेलते थे, उनकी आयु आठ वर्ष की थी। राव जोधा ने दर्शन कर नव स्थापित राज्य जोधपुर को अटल रहने का वरदान मांगा। जाम्भोजी ने अपनी दिव्य शक्ति द्वारा प्राप्त कर एक नगाड़ा राव जोधाजी को प्रदान किया। नगाड़े को पूजनीक वस्तु बताया और आशीर्वाद दिया कि यदि बाह्य आक्रमण हो जाये तो उक्त नगाड़े की पूजा करके सेना के बीच में बजाना, यह नगाड़ा ‘‘बेरीसाल’’ होगा। तुम्हारे बेरी (दुश्मन) इस नगाड़े की ध्वनि सुनकर भाग छूटेंगे। तुम्हारा राज्य आजीवन अटल रहेगा। राव जोधा का देहान्त विक्रम सम्वत 1545 में हुआ। तब तक वह जाम्भोजी के शिष्य बनकर रहे। राव जोधा के स्वर्गवास के बाद बीकानेर के राव बीकाजी ने जोधपुर पर आक्रमण करके उक्त नगाड़ा प्राप्त किया था जो आज भी बीकानेर के जूनागढ़ में मौजूद है।