द्रोणपुर का राव बीदा
जोधपुर नरेश राव जोधा के पुत्र बीका ने वि.स. 1522 में बीकानेर के 84 गांवों पर आधिपत्य स्थापित कर लिया था। उन दिनों बीका के भाई बीदा जोधावत ने द्रोणपुर का राज्य अधीन कर लिया था। राजकुमार बीदा जाम्भोजी के बचपनकाल से ही सम्पर्क में था। वि.स. 1516 में जाम्भोजी से प्रश्नोतर किया था। जाम्भोजी ने बीदा तथा ऊदा राजकुमारों को पांच शब्द कहे थे। द्रोणपुर का राज्य सम्भालने के बाद तथा बिश्नोई धर्मसंघ की स्थपना के बाद पुनः जाम्भोजी ने राव बीदा को कई चमत्कार दिखाये थे। वि.स. 1553-54 में इस क्षैत्र में भंयकर अकाल पड़ा था। जाम्भोजी ने अकाल पीड़ितो की जोरदार सहायता की थी। उससे जाम्भोजी की प्रसिद्धि और भी ज्यादा फैलती गई। राव बीदा के परिवार का एक सदस्य रायमल जाम्भोजी का अनुयायी बन गया था। बीदा ने रायमल को 29 नियमांे से विचलित करने के उद्देश्य से उसे एक कोठरी में बन्द कर दिया था। खाने के लिए बकरी का मांस कोठरी में रखवा दिया । भूख से व्याकुल होने पर रायमल ने जाम्भोजी का स्मरण किया। राव बीदा रायमल से मिलने आया उसी समय कोठरी का ताला स्वतः खुलकर नीचे गिर पड़ा। बीदे के देखते-देखते ही मांस पिण्ड की बकरी बनकर बाहर चली गई। वि.स. 1550 से 1555 के बीच की अवधि में ही मोती मेघवाल तथा उसकी पत्नी जाम्भोजी के 29 नियमों को मानने लगे। उन्होनंे अपना पेतृक धन्धा चमड़े आदि का काम छोड़ दिया। राव बीदा से यह सहन नहीं हुआ कि शूद्रजाति का व्यक्ति सन्त बनकर जीना चाहता है। उच्च वर्ग की सेवा नहीं करता है, बीदा ने मोती को कैद में डाल दिया तथा दूसरे दिन मृत्यु दण्ड देने का निर्णय सुना दिया। मोती ने जाम्भोजी का स्मरण किया। दूसरे दिन प्रातः द्रोणपुर के समीप रेत के पवित्र धोरे पर जाकर जाम्भोजी ने आसन लगाया। सामाचार सुनकर राव बीदा जाम्भोजी के पास आया। रास्ते में उसने जाम्भोजी के पीठ पर लात मारने की सोची थी लेकिन समीप पंहुच कर देखा तो पीठ दिखाई नहीं दी। सन्मुख दर्शन करने से बीदा कुछ भी सोच नहीं सका। ठोकर भी नहीं मार सका तथा प्रणाम भी नहीं कर सका, चुपचाप बैठ गया। बीदे ने कहा चमत्कार दिखाओ। जाम्भोजी ने नीम पर नारियल, आक के आम फल लगाकर बीदे को इसका स्वाद चखाया। पानी का कलश मंगवाकर उसका दूध बनाकर पीलाया। बीदे ने प्रभावित होकर मोती मेघवाल को कैद से मुक्त कर दिया। पानी का दूध बनाने आदि की सिद्धियां प्राप्त करने की लालसा में बीदा एक दिन समराथल पर आया। बीदे ने जाम्भोेजी से कहा तुम कृष्ण चरित्र की बातें करते हो अपने आपको भगवान मानते हो तो अपने अनेक रूप दिखाओ। जाम्भोजी ने कहा विराट रूप देखेंगे। बीदे ने एक निश्चित तिथि तय करके एकसाथ, एक ही समय में अलग-अलग गांवों में मौजूद रहकर अनेक रूप दिखाने की बात कही। जाम्भोजी ने उस बात को स्वीकर कर लिया। बीदे ने अपने ओठी (दूत) आस-पास के चालीस गांवों में भेज दिये। निश्चित तिथि के दिन सभी गांवों में भगवें झण्डे के तले अनेक लोगों की भीड़ के बीच हवन व उपदेश करते जाम्भोजी को देखा गया। दूतों ने वापस पंहुचकर बीदा को सारी बातें बताई। बीदा पुनः समराथल पर आया तथा जाम्भोजी से पूछा आपने कहंा-कहां हवन किया। तब जाम्भोजी ने कहा हजारों स्थानों पर हवन किया है। लोगों को धर्मोपदेश दिया है। इस बात को समझाते समय जाम्भोजी ने शब्दवाणी का 67वां शब्द ‘‘शुक्लहंस’’ राव बीदे के प्रति कहा था। उक्त शब्द में जब बीदा ने सुना ‘‘कुण जाणे म्हे पुरूष कै नारी’’ अर्थात् अलौकिक शक्ति पुरूष रूप है या स्त्री इसका भेद जन साधारण को नहीं होता। बीदा ने अपने अभिमान व मूर्खता के कारण अपने एक आदमी को कहा कि जाम्भोजी की चादर उतार कर देखो ये स्त्री है, पुरूष है, या नपुसंक है! लेकिन चमत्कार हुआ कि चादर बढती गई और अन्त नहीें आया। आखिर थककर बीदा ने क्षमायाचना की और लज्जित हुआ। फिर भी बीदा घमण्डी था। पिशाच वृति प्रबल थी। बीदा ने कहा अनेक रूप देख लिये लेकिन श्रीकृष्ण चरित्र की बातें करते हो तो महाभारत युद्ध के समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो विराट् रूप दिखाया था। वह रूप दिखाओ। जाम्भोजी ने अनेक अभिमानी मूर्ख तथा अधर्मी लोगों को अपनी दिव्य शक्ति से चमत्कार दिखाकर धर्म में प्रवृत किया था। बीदे का अभिमान चूर करने के लिये उसको दिव्य दृष्टि प्रदान की जिससे उसको विराट् रूप नजर आया। जिसमें स्वर्ग-नरक, सतयुग में प्रहलाद व हिरण्यकश्यप के चरित्र त्रेतायुग का राजा हरश्चिन्द्र का चरित्र, राम-रावण युद्ध, द्वापर का महाभारत युद्ध, कहीं सृष्टि का प्रलय कहीं घोर अंधकर, कहीं शून्य का नजारा कहीं नरक की यातनाएं, कहीं समुद्र की लहरे, कहीं तूफान आदि देखकर राव बीदा का शरीर कांपने लगा। वह बार-बार विनती करता हुआ जाम्भोजी से प्रार्थना करने लगा कि शान्त रूप धारण करो। उसके बाद बीदा ने जाम्भोजी की परीक्षा नहीं ली। राव बीदा ने वि.स. 1568 में अपने नाम से नया नगर बीदासर बसाया था। बीकानेर के राव लूणकरण ने एक बार जाम्भोजी से राव बीदा के बारे में पूछा तो जाम्भोजी ने कहा बीदा अधर्मी प्रवृति का है। बार-बार विवाद करने के कारण उसके बुरे कर्म अभी नष्ट नहीं हुए है। इसने धर्म का रास्ता पकड़ लिया है लेकिन अगले जनम में इसको ऊंट बनाना पड़ेगा, उसके बाद मोक्ष की प्राप्ति होगी। सन्त वील्होजी ने ‘कथा दूणपुर की’ में लिखा है कि राव बीदा मृत्युपरान्त ग्राम हिमटसर में ऊंट हुआ था। हिमटसर का बनिया व्यापारी उसकी पीठ पर नागौर से सामान ढोता था। कभी-कभी समराथल की पवित्र भूमि पर वह ऊंट बैठ जाता था जो मुश्किल से उठता था । बुढ़ा होने के बाद एक दिन बैठ गया, उठा नहीं । सेठ व्यापारी ने लाठी से पीट-पीट कर उस ऊंट की एक टांग तोड़ दी । एक कवि ने लिखा है -
वाद कियो बीदे जोधावत मरग्यो भूप रजा करके ।
मर कर ऊंट भयो बणिये को, टूटी टांग पड़्यो कर्के।
उसके बाद भगवान जम्भेश्वर की कृपा से ऊंट को मोक्षगति की प्राप्ति हुई थी ।