(1)
अमरलोक सूं म्हारा जाम्भोजी पधारिया,घर लोहट अवतार लियो ।
सिरया झिमाबाई करे थारी आरती , चंवर डुलावे आलम सालम जीओ ।
सोनेरे सिहंसन माथे जाम्भोजी विराजीया, भगत उतारे थारी आरती जीओ ।
जींझा मजीरा थोर बाजे मन्दिंर में, झालर की झणकार जीओ ।
नौपत नगारा थारे गहरा-गहरा बाजे, षंख रा बाजे तुंताड जीओ ।
घिरत गुगल थारे चढे मिठाई,आवो कपूर महकार जीओ ।
प्रेमभाव से थाने मनावा, निवण करे नर नारी जीओ ।
खुलाथारा पडिया पोल दरवाजा, धोक लागावे नर नारी जीओ ।
केर कुमटिया चोखा घण लागे, और फोगां री झाड़ी जीओ ।
.............................
(2)
श्री जम्भेष्वरजी अरज सुणो मैं दर्षन करने आया हूं ।।टेर।।
भगवीं टोपी गेरूओं चोलो अद्रभूत रूप बणाया जी ।
पेट पीठ कछु दीखे नाहीं सबके सम्मुख सुहाया जी ।।१।।
ना कुछ खावो न कुछ पीओ दिन-दिन दिखो सवाया जी ।
तन की ऐसी खुषबू आवे चन्दन का पेड लगाया जी ।।२।।
चालत धरती पाव ना टेको न दीखे तन छाया जी ।
चारो दिष में फिरकर देखा थांरा रूप समाया जी ।।३।।
फोग कंकेडी का बाग लगाया बीच में जाला सुहाया जी ।
नचे मोर परेवा बोले कैसा खेल रचाया जी ।।४।।
जीवन मुक्ति का मार्ग बाताया सबही के मन जी ।
गुरूदेव ने खडग चलाया ‘सीताराम’ गुण गाया जी ।।५।।
...........................
(3)
आव आव म्हारा जम्भ गुरु स्वामी, आयां सरसी रे, मरूधर देश में । टेर।
साल बंयारले काति बदी गुरु आप दिया उपदेश जी,
अंधियारो म्हारो दूर हो गयो उग्यो भाण जी । मरूधर देश में । 1।
पाहल मंत्र पिया प्रेम सूं, जिण सूं कटिया पाप जी
बारह कोटि जीवां रे कारण आया आप जी । मरूधर देश में । 2।
वर्ष इक्यावन सारी जगत में, मानव धर्म चलाया जी
उपदेश दियो उणतीस धर्म गुरु सबको सिखाया जी। मरूधर देश में । 3।
छोटी मोटी सब न्याति को अमृत प्यालो पायो जी
समराथल भूमि पर गुरुजी पन्थ चलायो जी । मरूधर देश में । 4।
विष्णु धर्म की करी स्थापना वो दिन याद आवे जी
आज थारे बिन जीव कलयुग में घणो दु:ख पावे जी । मरूधर देश में । 5।
जाली कांगरा निज मंदिर रा थारे हाथ सूं बणाया जी
मुकटि छाजा छतरी राख, गुरु मंदिर चिणायो जी । मरूधर देश में । 6।
थारी समाधि रो दर्शण कर जीव म्हारो बिलमावां जी
सुरजाराम सूं भजन सीख म्हें हरदम गावा जी । मरूधर देश में । 7।
...................................................
म्हाने आछा लागे महाराज दरसण जाम्भेजी रा
म्हाने प्यारा लागे गुरूदेव दरसण जाम्भेजी रा ।।
जे जन धुन सबदारी सुणिये घट परमल की बास
छरसण जाम्भेजी रा ।। १ ।।
चहुं दिस सन्मुख पीइ नहीं दरसे क्रोड भाण परकाष
दरसण जाम्भेजी रा ।। २ ।।
चालत खोज खेह नहीं दिसे तन छांय
दरसण जाम्भेजी रा ।। ३ ।।
भगवीं टोपी भगवों चोलो भलो सुरंगो भेश
दरसण जाम्भेजी रा ।। ४ ।।
समराथल पर आसण लगाये दिया सबदारां उपदेष
दरसण जाम्भेजी रा ।। ५ ।।
आ लौट के आवो जम्भ देव तुझे तेरे सन्त बुलाते है |
29 नियम गए भूल तुझे तेरे सन्त बुलाते है ||
सुना पङा तेरा पीपासर सुनी डगारिया सारी |
सुना जंगल समराथल का हवन जोत जहां भारी ||
कब आवोगे लोहट के लाल तुझे तेरे सन्त बुलाते है ....
धर्म ध्वजा थारी झुकने लागी पाप ने पेर पंसारा |
पाप घटा बण बरषण लागी भरया पाप का बेङा ||
जामे डुब रहयो संसार तुझे तेरे सन्त बुलाते है ....
चले गये बेकुण्ठ पुरी मे सुनी जम्भ गीता |
रो रोकर हम तुझे पुकारे जैसै लंका मे सीता ||
कब धरोगे राम अवतार तुझे तेरे सन्त बुलाते है ....
काम क्रोध मद् लोभ ने आण चहू दिस घेरा |
हाथ कमण्डल धर कर आवो देवो नाम का सहारा ||
गावे जम्भ मण्डल गुणगान तुझे तेरे सन्त बुलाते है ....
............................................................
तर्ज अब लोट के आजा मेरे मीत
अब दर्षन देओ जम्भदेव, भगत तेरे व्दार पे आये हैं ।।टेर।।
पन्द्रह सो और आठ में थे पींपासर आया ।
माता हंसा गोद खिलाया लोहट मन हर्शाया ।
रहे सात बर्श तक मौन, बाल लीला दिखाई है ।
अब दर्षन देओ.............।।१।।
दूदेजी ने खाण्डो दीन्हो राज मेडतो पायो ।
लोहटरी ने देख्यो अचम्भो आंगन जल बरसायो ।
वर्श बीस और सात , ग्वालों संग धेनु चराई है ।
अब दर्षन देओ.............।।२।।
पन्द्रह सो और साल बंयालेबिष्नोई पंथ चालायो ।
जात पांत रो भेद मिटाकर अमृत पाहल पिलायो ।
दीन्हो वर्श इक्यावन ग्यान , धर्म की धजा फहराई है ।
अब दर्षन देओ.............।।३।।
उमाबाई ले बत्तीसी , समराथल पर आई ।
रोटू गांव में बाग लगयो खेजडिया उगाई ।
भरयो ठाट-बाट सूं भात उमा ने बहन बणाई है ।
अब दर्षन देओ.............।।४।।
विश्णु-विश्णु तू भण रे प्राणी ओ ही मत्रं सीखायो ।
पन्द्रंह सो और साल तेणवे ज्योति रूप समायो ।
करे रामरतन गुणगान दर्षन की आष लगाई है ।
अब दर्षन देओ.............।।५।।
भजन २
ठूमक-ठूमक देखो आवे जाम्भराज,
हंसा जो मगन भई देख्यो ऐसा साज ।
आगे-आगे गऊआं चाले पीछे चाले ग्वाल,
सारां बहच चाले हंसा लोहटजी रो लाल ।। १ ।।
आवत देखी गऊआं नगर की नारख्
हंसा आगे सखियां करे पुकार ।। २ ।।
सिर पे सुहावे टोपी गले काली माल,
कान्धे धर गेडी ख्सले अद्भत चाल ।। ३ ।।
बोले नहीं मुखडै सूं करे सब काज,
लीला ज्यांरी लखी नहीं पीपासर समाज ।। ४ ।।
पूर्ण ब्रह्म रूप धार लियो भेश,
पार नहीं पावे ब्रह्मा विश्णु महेष ।। ५ ।।
ओही लोहट सुत ओहो कृश्णमुरार,
सेवक आल्म गुण रहयो उचार ।। ६ ।।
भजन १
आओनी म्हारी जागण में समराथल रा जम्भाजी
समराथल आपरा संग में लाज्यो जाम्भजी
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। टेर ।।
समराथल रे धीरे ऊपर जागण जोर रचायोजी
आलमजी सालमजी जागण दीन्हो सतगुरू जाम्भाजी।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। १ ।।
बाजेजी भगत रो थेतो यज्ञ सम्पूर्ण करियोजी,
बाजेजी भगत रे जागण दीन्हो सतगुरू जाम्भाजी।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। २ ।।
त्रेतायुग में सीता कारण लंका आप पधारयाजी,
सीताजी ने जाकर दर्षन दीन्हो सतगुरू जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ३ ।।
द्वापार युग में रूक्मणी री प्रीत पूरबली पालीजी ,
टपने करसूं रथ में बैठाई सतगुरू जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ४ ।।
काढी होतो जैसलमेर रो जेतसिंह महाराजाजी,
राजाजी रे तन री कोढ झाडी सतगुरू जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ५ ।।
भगवी टोपी भगवों चोलो प्यारो म्हाने लागेजी,
सारां ही भगता ने संग लाज्यो जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ६ ।।
तू ही रामा तूं ही कृश्णा तुं ही मोहन गिरधारी ,
तूं ही सुरजाराम ने बिसारियों मत ना जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ७ ।।
जाम्भा नगरी सोवणी ऊँचो बण्यो कैलाश
माटी काडो प्रेम से, होवे बैकुण्ठा वाश
म्हाने गुरूजी मिलण रो लागो कोड।
समराथल धोरे जावांला। टेर।
गुरूजी मिलण रो काड लाग रह्यो, जास्यां धाम मुकाम,
कई जनमां रा पाप काटस्यां, पावांला मुक्ति धाम । 1।
अमावस रो वरत राखस्यां, धर जम्भेश्वर ध्यान
माटी काडां नाडिये री पावांला मुक्ति धाम । 2।
थारे जातरू आवे घणेरा, म्हाने भूलज्यो नाय
समराथल धोरे री माटी लेवाला अंग मे रमाय । 3।
चरण कमल रा थारा खड़ाऊ पडय़ा पीपासर मांय
चोलो थारो पडय़ो जांगलू, टोपी है धाम मुकाम । 4।
जाम्भोलाव थारो जम्भ सरोवर, थे खुद आप खुदायो
चेत भादवे मेलो भरीजे, मन वांछित फल पांवा । 5।
फोग कंकेड़ी कुं मठा रो है धोरे पर बाग
उण धोरे रा दरसण करस्यां बारम्बार नंदराम । 6।
अमरलोक सूं म्हारा जाम्भोजी पधारिया,घर लोहट अवतार लियो ।
सिरया झिमाबाई करे थारी आरती , चंवर डुलावे आलम सालम जीओ ।
सोनेरे सिहंसन माथे जाम्भोजी विराजीया, भगत उतारे थारी आरती जीओ ।
जींझा मजीरा थोर बाजे मन्दिंर में, झालर की झणकार जीओ ।
नौपत नगारा थारे गहरा-गहरा बाजे, षंख रा बाजे तुंताड जीओ ।
घिरत गुगल थारे चढे मिठाई,आवो कपूर महकार जीओ ।
प्रेमभाव से थाने मनावा, निवण करे नर नारी जीओ ।
खुलाथारा पडिया पोल दरवाजा, धोक लागावे नर नारी जीओ ।
केर कुमटिया चोखा घण लागे, और फोगां री झाड़ी जीओ ।
.............................
(2)
श्री जम्भेष्वरजी अरज सुणो मैं दर्षन करने आया हूं ।।टेर।।
भगवीं टोपी गेरूओं चोलो अद्रभूत रूप बणाया जी ।
पेट पीठ कछु दीखे नाहीं सबके सम्मुख सुहाया जी ।।१।।
ना कुछ खावो न कुछ पीओ दिन-दिन दिखो सवाया जी ।
तन की ऐसी खुषबू आवे चन्दन का पेड लगाया जी ।।२।।
चालत धरती पाव ना टेको न दीखे तन छाया जी ।
चारो दिष में फिरकर देखा थांरा रूप समाया जी ।।३।।
फोग कंकेडी का बाग लगाया बीच में जाला सुहाया जी ।
नचे मोर परेवा बोले कैसा खेल रचाया जी ।।४।।
जीवन मुक्ति का मार्ग बाताया सबही के मन जी ।
गुरूदेव ने खडग चलाया ‘सीताराम’ गुण गाया जी ।।५।।
...........................
(3)
आव आव म्हारा जम्भ गुरु स्वामी, आयां सरसी रे, मरूधर देश में । टेर।
साल बंयारले काति बदी गुरु आप दिया उपदेश जी,
अंधियारो म्हारो दूर हो गयो उग्यो भाण जी । मरूधर देश में । 1।
पाहल मंत्र पिया प्रेम सूं, जिण सूं कटिया पाप जी
बारह कोटि जीवां रे कारण आया आप जी । मरूधर देश में । 2।
वर्ष इक्यावन सारी जगत में, मानव धर्म चलाया जी
उपदेश दियो उणतीस धर्म गुरु सबको सिखाया जी। मरूधर देश में । 3।
छोटी मोटी सब न्याति को अमृत प्यालो पायो जी
समराथल भूमि पर गुरुजी पन्थ चलायो जी । मरूधर देश में । 4।
विष्णु धर्म की करी स्थापना वो दिन याद आवे जी
आज थारे बिन जीव कलयुग में घणो दु:ख पावे जी । मरूधर देश में । 5।
जाली कांगरा निज मंदिर रा थारे हाथ सूं बणाया जी
मुकटि छाजा छतरी राख, गुरु मंदिर चिणायो जी । मरूधर देश में । 6।
थारी समाधि रो दर्शण कर जीव म्हारो बिलमावां जी
सुरजाराम सूं भजन सीख म्हें हरदम गावा जी । मरूधर देश में । 7।
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म्हाने आछा लागे महाराज दरसण जाम्भेजी रा
म्हाने प्यारा लागे गुरूदेव दरसण जाम्भेजी रा ।।
जे जन धुन सबदारी सुणिये घट परमल की बास
छरसण जाम्भेजी रा ।। १ ।।
चहुं दिस सन्मुख पीइ नहीं दरसे क्रोड भाण परकाष
दरसण जाम्भेजी रा ।। २ ।।
चालत खोज खेह नहीं दिसे तन छांय
दरसण जाम्भेजी रा ।। ३ ।।
भगवीं टोपी भगवों चोलो भलो सुरंगो भेश
दरसण जाम्भेजी रा ।। ४ ।।
समराथल पर आसण लगाये दिया सबदारां उपदेष
दरसण जाम्भेजी रा ।। ५ ।।
आ लौट के आवो जम्भ देव तुझे तेरे सन्त बुलाते है |
29 नियम गए भूल तुझे तेरे सन्त बुलाते है ||
सुना पङा तेरा पीपासर सुनी डगारिया सारी |
सुना जंगल समराथल का हवन जोत जहां भारी ||
कब आवोगे लोहट के लाल तुझे तेरे सन्त बुलाते है ....
धर्म ध्वजा थारी झुकने लागी पाप ने पेर पंसारा |
पाप घटा बण बरषण लागी भरया पाप का बेङा ||
जामे डुब रहयो संसार तुझे तेरे सन्त बुलाते है ....
चले गये बेकुण्ठ पुरी मे सुनी जम्भ गीता |
रो रोकर हम तुझे पुकारे जैसै लंका मे सीता ||
कब धरोगे राम अवतार तुझे तेरे सन्त बुलाते है ....
काम क्रोध मद् लोभ ने आण चहू दिस घेरा |
हाथ कमण्डल धर कर आवो देवो नाम का सहारा ||
गावे जम्भ मण्डल गुणगान तुझे तेरे सन्त बुलाते है ....
............................................................
तर्ज अब लोट के आजा मेरे मीत
अब दर्षन देओ जम्भदेव, भगत तेरे व्दार पे आये हैं ।।टेर।।
पन्द्रह सो और आठ में थे पींपासर आया ।
माता हंसा गोद खिलाया लोहट मन हर्शाया ।
रहे सात बर्श तक मौन, बाल लीला दिखाई है ।
अब दर्षन देओ.............।।१।।
दूदेजी ने खाण्डो दीन्हो राज मेडतो पायो ।
लोहटरी ने देख्यो अचम्भो आंगन जल बरसायो ।
वर्श बीस और सात , ग्वालों संग धेनु चराई है ।
अब दर्षन देओ.............।।२।।
पन्द्रह सो और साल बंयालेबिष्नोई पंथ चालायो ।
जात पांत रो भेद मिटाकर अमृत पाहल पिलायो ।
दीन्हो वर्श इक्यावन ग्यान , धर्म की धजा फहराई है ।
अब दर्षन देओ.............।।३।।
उमाबाई ले बत्तीसी , समराथल पर आई ।
रोटू गांव में बाग लगयो खेजडिया उगाई ।
भरयो ठाट-बाट सूं भात उमा ने बहन बणाई है ।
अब दर्षन देओ.............।।४।।
विश्णु-विश्णु तू भण रे प्राणी ओ ही मत्रं सीखायो ।
पन्द्रंह सो और साल तेणवे ज्योति रूप समायो ।
करे रामरतन गुणगान दर्षन की आष लगाई है ।
अब दर्षन देओ.............।।५।।
भजन २
ठूमक-ठूमक देखो आवे जाम्भराज,
हंसा जो मगन भई देख्यो ऐसा साज ।
आगे-आगे गऊआं चाले पीछे चाले ग्वाल,
सारां बहच चाले हंसा लोहटजी रो लाल ।। १ ।।
आवत देखी गऊआं नगर की नारख्
हंसा आगे सखियां करे पुकार ।। २ ।।
सिर पे सुहावे टोपी गले काली माल,
कान्धे धर गेडी ख्सले अद्भत चाल ।। ३ ।।
बोले नहीं मुखडै सूं करे सब काज,
लीला ज्यांरी लखी नहीं पीपासर समाज ।। ४ ।।
पूर्ण ब्रह्म रूप धार लियो भेश,
पार नहीं पावे ब्रह्मा विश्णु महेष ।। ५ ।।
ओही लोहट सुत ओहो कृश्णमुरार,
सेवक आल्म गुण रहयो उचार ।। ६ ।।
भजन १
आओनी म्हारी जागण में समराथल रा जम्भाजी
समराथल आपरा संग में लाज्यो जाम्भजी
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। टेर ।।
समराथल रे धीरे ऊपर जागण जोर रचायोजी
आलमजी सालमजी जागण दीन्हो सतगुरू जाम्भाजी।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। १ ।।
बाजेजी भगत रो थेतो यज्ञ सम्पूर्ण करियोजी,
बाजेजी भगत रे जागण दीन्हो सतगुरू जाम्भाजी।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। २ ।।
त्रेतायुग में सीता कारण लंका आप पधारयाजी,
सीताजी ने जाकर दर्षन दीन्हो सतगुरू जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ३ ।।
द्वापार युग में रूक्मणी री प्रीत पूरबली पालीजी ,
टपने करसूं रथ में बैठाई सतगुरू जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ४ ।।
काढी होतो जैसलमेर रो जेतसिंह महाराजाजी,
राजाजी रे तन री कोढ झाडी सतगुरू जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ५ ।।
भगवी टोपी भगवों चोलो प्यारो म्हाने लागेजी,
सारां ही भगता ने संग लाज्यो जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ६ ।।
तू ही रामा तूं ही कृश्णा तुं ही मोहन गिरधारी ,
तूं ही सुरजाराम ने बिसारियों मत ना जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ७ ।।
जाम्भा नगरी सोवणी ऊँचो बण्यो कैलाश
माटी काडो प्रेम से, होवे बैकुण्ठा वाश
म्हाने गुरूजी मिलण रो लागो कोड।
समराथल धोरे जावांला। टेर।
गुरूजी मिलण रो काड लाग रह्यो, जास्यां धाम मुकाम,
कई जनमां रा पाप काटस्यां, पावांला मुक्ति धाम । 1।
अमावस रो वरत राखस्यां, धर जम्भेश्वर ध्यान
माटी काडां नाडिये री पावांला मुक्ति धाम । 2।
थारे जातरू आवे घणेरा, म्हाने भूलज्यो नाय
समराथल धोरे री माटी लेवाला अंग मे रमाय । 3।
चरण कमल रा थारा खड़ाऊ पडय़ा पीपासर मांय
चोलो थारो पडय़ो जांगलू, टोपी है धाम मुकाम । 4।
जाम्भोलाव थारो जम्भ सरोवर, थे खुद आप खुदायो
चेत भादवे मेलो भरीजे, मन वांछित फल पांवा । 5।
फोग कंकेड़ी कुं मठा रो है धोरे पर बाग
उण धोरे रा दरसण करस्यां बारम्बार नंदराम । 6।