गौ चारण काल
उन्होंने सात वर्ष की आयु से लेकर 27 वर्ष की आयु तक गाय चरायी । गायों को चराते हुए ग्वाल बालों के साथ कई प्रकार के विचित्र कार्य करते थे, जिससे ग्वाल बाल बड़े खुश रहते और अचम्भित भी होते थे। जैसा कि कृष्ण भगवान ने गौ सेवा की, उसी तरह जाम्भोजी महाराज ने भी इस काल में गौ-सेवा की।
गुरु जांभोजी के सम्पर्क में आने वाले राजघरानों से सम्बन्धित सर्वप्रथम सम्वत् 1519 में राव दूदाजी थे, जिन्हे जांभोजी ने मेड़ता वापिस मिलने का आशीर्वाद दिया व केर की लकड़ी का एक खाण्डा भी भेंट किया। इस भेंट के बाद दूदाजी ने जांभोजी की कृपा से मेड़ता वापस लिया। उसके बाद राव जोधाजी को सम्वत् 1526 में जाम्भोजी महाराज ने बेरीसाल नगाड़ा भेंट किया, जिसे बाद में जोधाजी के पुत्र राव बीकाजी(जिन्होनें बीकानेर बसाया था) अपने साथ ले आये जो कि आज राजघराने की पूजनीय वस्तुओं में एक है एवं जूनागढ़ (बीकानेर) में सुरक्षित है। जांभोजी ने हरे वृक्ष (विशेष रूप से खेजड़ी) की रक्षा करना बताया। बीकानेर के राजकीय झण्डे में मूल मंत्र के ऊपर खेजड़े का वृक्ष रखा हुआ है। इससे जांभोजी के प्रभाव की झलक मिलती है। इस काल में जाम्भोजी के सम्पर्क में अनेक लोग आये, उनकी शंका का समाधान व मनोकामना पूरी हुई।